(आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर)
मन छुवन चाहत आकाशकैसे कहूँ री सखीअपने मन की आस।।
राह न सूझेरात अंधेरीकैसे करूँ री रास!वोह! हो आई सुप्रभात।।
देख दिशा दरस को तरसूंरी कैसे करूँ तेरा सिंगार!
मन अकुलात मिलन कोसखीकब होगी मुलाक़ात।।