Thursday, November 7, 2019

नील गगन और नीलकंठ


                    (आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर)


मन छुवन चाहत आकाश
कैसे कहूँ री सखी
अपने मन की आस।।


राह न सूझे
रात अंधेरी
कैसे करूँ री रास!
वोह! हो आई सुप्रभात।।


देख दिशा 
दरस को तरसूं
री कैसे करूँ तेरा सिंगार!


मन अकुलात 
मिलन को
सखी
कब होगी मुलाक़ात।।